लाखों आँखों में सजता है करोड़ों का मेला

कोटा की पहचान यदि कोचिंग संस्थान हैं तो दशकों पुराना दशहरा मेला यहां की सांस्कृतिक, व्यावसायिक समृद्धि की कहानी कहता है। मेले के सवा सौ साल पूरे होने में दो वर्ष बाकी हैं। 123वां राष्ट्रीय दशहरा मेला-2016 पहली अक्टूबर से शुरू होगा।

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नगर निगम व मेला समिति तैयारियों को अंतिम रूप देने में जुटा है। कोटा ही नहीं हाड़ौती की शान बन चुके मेले में लोगों की सहभागिता ऐसी है कि रावण दहन के लिए बाजार तक बंद रहते हैंं। मेले में देशभर के दुकानदार आते हैं। इससे मेले में देशभर की कला-संस्कृति की झलक देखने को मिलती है।

मेले में  आते है 10 लाख से अधिक लोग

एक अनुमान के मुताबिक 27 दिन चलने वाले इस मेले में 10 लाख से अधिक लोग आते हैं। ऐसे में इसका आर्थिक महत्व भी बहुत ज्यादा है। लोगों को सालभर इसका इंतजार रहता है। बड़े व्यापारियों से लेकर फुटकर दुकानदार तक सालभर मेले में आने की तैयारी करते हैं। आर्थिक जानकारों का दावा है कि यह सालाना आयोजन करीब 100 करोड़ का होता है। राम कथा से शुरू होने वाला मेला रावण दहन के साथ परवान चढ़ता है। नगर निगम की ओर से मेले में 755 दुकानों का आवंटन होता है।

 खान-पान पर ही 30 करोड़ से अधिक का खर्च

मेले से आने वाले व्यापारियों का कहना है कि यहां लोग सबसे ज्यादा खर्च खाने-पीने पर करते हैं। शाम सात से रात 12 बजे तक फूड जोन में पैर रखने की जगह नहीं बचती है। मेले में खान-पान पर ही 30 करोड़ से अधिक का खर्च होता है। कुछ आइटम्स तो एेसे होते हैं जो मेले में ही मिलते हैं। कचौरी भले दुनिया में कोटा की पहचान हो लेकिन नसीराबाद का कचौरा, आगरा का पेठा, मथुरा की बेड़ई और कोटा के गोभी पकौड़े, सॉफ्टी 27 दिन यहां की फेवरेट डिश होती है।

बड़ी-बड़ी कंपनियों की भी निगाहें

निगम मेले व कार्यक्रमों के आयोजन पर इस बार 3 करोड़ 81 लाख रुपए का खर्च करेगा। वहीं, एक करोड़ का राजस्व कर से मिलता है। मेले में 10 लाख से अधिक की भागीदारी से कॉपोरेट जगत भी वाकिफ है। इसलिए कई बड़ी कंपनियां यहां अपने उत्पादों का प्रचार करती हैं। सरकारी विभाग भी अपनी योजनाओं की जानकारी देने का यहां प्रदर्शनियां लगाते हैं।

रावण दहन में सबसे ज्यादा भीड़

मेले में सबसे अधिक भीड़ रावण दहन के दिन होती है। एक अनुमान के मुताबिक इस दिन डेढ़ लाख से ज्यादा लोग आते हैं। इसके बाद सबसे ज्यादा भीड़ समापन पर आतिशबाजी के दिन होती है। इस दिन आंकड़ा एक से सवा लाख के बीच होता है। सिने संध्या, अखिल भारतीय कवि सम्मेलन, मुशायरा व अन्य कार्यक्रमों में 70 से 75 हजार लोगों की भागीदारी होती है। मेला समिति अध्यक्ष राम मोहन मित्रा कहते हैं, मेले को वैश्विक पहचान दिलाने के लिए पहली बार जयपुर में हुई ट्रैवल मार्ट में प्रस्तुति दी गई।

बना रहे परम्पराओं का आकर्षण-इज्यराज सिंह

कोटा दशहरा मेले का गौरवशाली इतिहास रहा है। नई पीढ़ी को विरासत जानने का मौका मिलता है। आज परंपराओं के मूल स्वरूप को बरकार रखने के साथ पर्यटकों को जोडऩे की जरूरत है। परंपराओं का आकर्षण बनाए रखने के लिए भी प्रयास करने की जरूरत है। मेले के स्वरूप को और ज्यादा व्यवस्थित किया जाना चाहिए। यहां आने वाले व्यवसायियों को सुरक्षा का माहौल मिले, उनके साथ अच्छा व्यवहार हो। मेले में होने वाले कार्यक्रमों को और लोकप्रिय बनाने की जरूरत है। शासन-प्रशासन के साथ कोटा के लोगों की भी इस सांस्कृतिक विरासत को समृद्ध बनाने में भागीदारी होनी चाहिए। इस तरह सामूहिक प्रयासों से दशहरा मेले का वैभव पुन: लौटेगा और पूरे देश में फिर से पहचान कायम होगी। बाहर से मेला देखने आने वालों की संख्या में भी इजाफा होगा।

विदेशी पर्यटकों को लाना होगा- महेश चौधरी

दशहरा मेले की राष्ट्रीय स्तर पर ब्रांडिंग की जरूरत है। इसमें राज्य सरकार को बड़ी भूमिका निभाने की जरूरत है। साथ ही मेले को नयापन देने की जरूरत है। मेले में बड़ी कम्पनियों को भी आमंत्रित किया जाना चाहिए। उनके लिए अलग से जोन बनाया जाए। इसमें आईटी सेक्टर से लेकर नॉलेजबेस इण्डस्ट्रीज हो सकती है। स्किल्ड डेवपलमेंट से भी मेले को जोड़ा जाए। पर्यटन विभाग को जोड़ा जाए। विदेशी पयर्टक लाने के प्रयास हो।

 सोशल मीडिया से करें प्रचार- डॉ. विनीता गर्ग

कोटा दशहरा मेले को राष्ट्रीय ख्याति दिलाने के लिए निगम को ऑनलाइन सिस्टम को डवलप करना होगा। मेले की वेबसाइट तो बन गई है, लेकिन इसे रेगूलर अपडेट करेंगे, तभी पर्यटक यहां आएंगे। इसमें ऐसी सभी जानकारी होनी चाहिए जो पर्यटकों के लिए जरूरी हो। इसके  अलावा सोशल मीडिया पर भी मेले का प्रचार प्रसार होना चाहिए। हमारी परम्परा व खूबियों की प्रॉपर ब्रांडिग होनी चाहिए।

Information from the online news article published here: http://rajasthanpatrika.patrika.com/story/kota/kota-dussehra-mela-2016-2342332.html

kota-mela-rajasthan-patrika-29-10-2016