– चंबल की धरती से वीर रस के कवियों ने ललकारा पाकिस्तान को
– कोटा के दशहरा मेले में विजयश्री रंगमंच पर देर रात तक अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में खूब जमा रंग। देर रात तक वीर रस के कवियों ने किया देषभक्ति का जज्बा पैदा तो हास्त के कवियों ने खूब गुदगुदाया।
– कमल सिंह यदुवंशी/मीडिया पॉइंट
कोटा, 14 अक्टूबर। नगर निगम कोटा की ओर से आयोजित 124 वे राष्ट्रीय दशहरे मेले में शनिवार देर रात तक विजयश्री रंगमंच पर आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में खूब रंग जमा।
दैनिक भास्कर के सहयोग से आयोजित इस सम्मेलन में वीर रस की रचना सुन मौजूद श्रोताओं में देष भक्ति का जज्बा भर गया। दर्षक दीर्घा भारत माता के जयकारों से गूंज उठा। देषभर से आए कवियों ने हास्य, व्यंग्य और ओज की कविताएं सुना देश के हालात पर निशाने साधे। शृंगार की कविताओं का भी श्रोताओं ने खूब लुत्फ उठाया। कवि सम्मेलन को सुनने शहर समेत हाड़ौती के गांवों कस्बों से भी बड़ी संख्या में लोगों का सैलाब उमड़ा। शांत आसमान, टिमटिमाते तारे के बीच देर रात वीर रस के कवि विनित चौहान ने चंबल की धरा से पाकिस्तान को ललकारते हुए देषभक्ति का माहौल पैदा कर दिया। पूरी घाटी तो दहल चुकी है आतंकी अंगारों से…बहुत हो चुका है मोदीजी, ये मोन तुम्हारे खलते है, रोज सैनिकों की लाषों से जीगर हमारे जलते है, अब घर के गददारों को भी थोडा सा झटका दो, जो सेना पर पत्थर फेंके लाल कीले पर लटका दो…। तुम जाकर पहले पूछों अपने दादा नानाओं से, वो भीख जान की मांग गए थे भारतीय सेनाओं से…कष्मीर देश का मस्तक है…आतंकी कैसे घुस आए लाहोरी दरबारों से लगता है कोई चूक हुई है अपने पहरेदारों से, वरना खून नहीं बहता भारत मा के लालों का…ये षांति षांति के चक्कर में आधा कष्मीर गंवा बैठे सुनाई। कवि जगदीष सोलंकी ने जुबां से कुछ नहीं बोले तिरंगा जानता सब है…सुनाकर तिरंगे की व्यथा बयां की। कब तक वसुंधरा पर कोई इस तरह जीये…चांदी सी चमकती है ये अंजान कष्तीया दामन में लिए बैठी है बदनाम बस्तियां…रचना सुनाई। डॉ. भुवन मोहिनी ने कोई मंदिर हो या मस्जिद षिवाला छोड़ देता है गोपी का गीत सुन उद्धव माला तोड़ देता है…ये मरते है किसी पर उसी दिन खुलकर जीते है बताए क्या बुजुर्गो की…कोई मुड मुड कर तकता है कोई रूक रूक कर चलता है, कोई हाथों को मलता है कोई आंखों को मलता है मैं जब सड़कों पर चलती हूं तमाषा खूब होता है….रचना पेष की। कवि सम्मेलन में कवियित्री कविता तिवारी ने सरस्वती वंदना कर कार्यक्रम की षुरूआत की।
कविता ने जब तक सूरज चंदा चमके तब तक हिंदुस्तान रहे…बिना मौसम ह्दय कोकिल स्वर गूंजा नहीं जाता, जहां अनुराग पलता हो वहां दूजा नहीं जाता…मगर जो देषद्रोही हो उसे पूजा नहीं जाता….वतन के नाम पर जीना वतन के नाम मर जाना सहादत से बड़ी इबादत हो नहीं सकती…। दिल्ली से आये कवि शम्भू शेखर ने हास्य की फुलझड़ियां छोड़ी।
मेला आयोजन समिति के अध्यक्ष राममोहन मित्रा बाबला व कार्यक्रम संयोजक रमेष चतुर्वेदी ने बताया कि देर रात तक चले इस कवि सम्मेलन में कवि गोपालदास नीरज, वेदव्रत वाजपेयी, विश्णु सक्सेना, जॉनी बैरागी, अतुल कनक, शशिकांत यादव ने काव्य पाठ किया। संचालन सत्यनारायण सत्तन ने किया।
दर्शक दीर्घा भी छोटे पड़ गए..
कवि सम्मेलन में इतनी तादाद में लोग आए कि मंच के सामने बने विषिश्ट अतिथियों, पत्रकारो ंव पार्शदों के लिए बने दीर्घा भी ठसाठस भर गए। मैदान के बाहर भी सड़क पर खड़े रहकर लोग कविताएं सुनते रहे। जिन कवियों ने अच्छी कविताएं सुनाई उनका तालियों से स्वागत हुआ, वहीं कुछ को श्रोताजनों ने हूट भी किया। मंच के सामने आगे बैठने के लिए कई लोगों को पुलिस से मषक्कत भी करनी पड़ी। सुरक्षा की दृश्टि से पुलिस के व्याप्क बंदोबस्त नजर आए।
मंच पर अतिथियों व कवियों को किया सम्मानित
मुख्य अतिथि कोटा उत्तर विधायक प्रहलाद गुंजल, अध्यक्षता कर रहे विधायक विद्याषंकर नंदवाना, विषिश्ट अतिथि भाजपा देहात अध्यक्ष जयवीर सिंह, भाजपा नेता रविंद्र सिंह सोलंकी, अरविंद सिसोदिया, जगदीष जिंदल, राजेंद्र अग्रवाल, बशीर अहमद मूयर ने मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर कवि सम्मेलन की शुरूआत की। महापौर महेश विजय, उप महापौर सुनिता व्यास, मेला अध्यक्ष राममोहन मित्रा बाबला, आयुक्त डॉ. विक्रम जिंदल, उपायुक्त राजेष डागा, मेला अधिकारी व उपायुक्त नरेष मालव, अतिरिक्त मेला अधिकारी व अधीक्षण अभियंता प्रेमषंकर षर्मा, मेला समिति सदस्य महेष गौतम लल्ली, रमेष चतुर्वेदी, नरेंद्र हाड़ा, कृश्ण मुरारी सामरिया, भगवान स्वरूप गौतम, विकास तंवर, प्रकाष सैनी, मीनाक्षी खंडेलवाल, मोनी कुमारी आदि ने अतिथियों व कवियों का माल्यार्पण कर स्वागत किया। मंच पर वरिष्ठ कवि गोपालदास नीरज का निगम की ओर सम्मान किया गया।
1957 से शुरू हुआ मेले में कवि सम्मेलन, रामधारीसिंह दिनकर भी आ चुक है यहां
124 साल पूरेे कर चुके कोटा के राश्ट्रीय दशहरे मेले में अखिल भारतीय कवि सम्मेलन की शुरुआत वर्ष 1957 में हुई थी। तात्कालीन नगरपालिका अध्यक्ष शीतला प्रसाद माथुर व मेलाध्यक्ष वकील रामस्वरूप का काफी योगदान रहा। इतिहासविद् फिरोज अहमद बताते है कि उस जमाने में भी यहां हास्य, वीर रस व वर्तमान परिप्रेक्ष्य पर खूब कविताएं होती थी। कोटा के इस रंगमंच पर राश्ट्रीय कवि रामधारीसिंह दिनकर, काका हसरती, अल्हड़ बीकानेरी, हुल्लड़ मुरादाबादी, देवराज दिनेष, कवियित्री माया गोविंद जैसे ख्यातनाम कविगण भी आ चुके है। देर रात तक काव्य सरिता का खूब रंग जमता था।
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