कोटा के 123 वें राष्ट्रीय दशहरा मेले में 21वें दिन शुुक्रवार रात मशहूर गज़ल उस्ताद तलत अजीज ने दशहरा मैदान के विजयश्री रंगमंच से अपने सम्मोहक सुरों का जादू बिखेरा और श्रोताओं की जमकर दाद पाई। मेला परिसर तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजायमान होता रहा। सूरों का यह जादूगर कोटा नगर निगम की ओर से आयोजित कार्यक्रम शााम-ए-गजल में मौजूद श्रोताजनों के समक्ष अपनी प्रस्तुति दे रहे थे।
शुरूआत कैसे सुकुन पाउं तुझे देखकर…से की। इसके बाद हर मुलाकात का अंजाम जुदाई क्यूं है, अब तो हर वक्त यहीं बात सताती हमें….यह जमीन चांद से बेहतर नजर आती है हमें… जिंदगी जब भी तेरी बज्म़ में लाती है हमें…कैसे ये सुकून पाउं देखने के बाद अब क्या गजल सुनाउं तुजे देखने के बाद…आवाज दे रही है मेरी जिंदगी मुझे जाउं या ना जाउं तुझे देखने के बाद…अब क्या गजल सुनाउं…तेरी निगाहे मस्ती ने मखमूर कर दिया…तू सामने आंखों से हो बयां तो सांसो को रोक लू चेहरा कहा छुपाउं तुझे देखने के बाद…सुनाकर रसिक श्रोताओं को संगीत की दुनियां में डूबो दिया।
इससे पहले कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कोटा बूंदी के सांसद ओम बिरला, विशिष्ट अतिथि सांगोद विधायक हीरालाल नागर, नगर विकास न्यास के अध्यक्ष रामकुमार मेहता, एसटीएन चैनल के निदेशक बलवीर सिंह सिसोदिया, वरिष्ठ भाजपा नेता नंदलाल शर्मा, जिला परिषद सदस्य प्रेम गोचर, भाजपा देहात जिला उपाध्यक्ष रिंकू सोनी ने विधिवत की। इसके बाद मंच से सुरो के जादूगर तलक अजीज ने आई जो रूत सुहानी तेरी याद आ गई महकी जो रातरानी तेरी याद आ गई…खुद को संभाले रखा था…बरसात की भीगी रातों में फिर कोई कहानी याद आए…कुछ अपना जमाना याद आया कुछ उनकी जवानी याद आए.. बरसात की भीगी रातों में…सरीखी गजले सुनाई। गुलाबी सर्द हवाओं के झौंकों के बीच साजों के सुरों के साथ होती गजलों की बौछार ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। मंच से उम्दा गजलों को अपने जादूई सुरों के साथ पेष कर मुंबई के इस गजल गायक ने जमकर दाद पाई। ढोलक तबले की जुगलबंदी के साथ सितार, वायलीन व हारमोनियम आदि साज के साथ आया तेरे दर पर दीवाना… फास्ट रिदम के साथ पेश कर जावेद अख्तर की इस गजल पर श्रोताओं को झूमने को मजबूर कर दिया। वो चांदनी का बदन खुशबुओं का साया है, बहुत अजीज हमें है मगर पराया है… बुरकेफ हवाएं है मौसम भी सुहाना है ऐसे में चले आओं मिलने का बहाना है..जैसी गजलों की सरिता बहती रहीं। कार्यक्रम देर रात तक चला। कार्यक्रम स्थल के अलावा भी सुरक्षा की दृष्टि से चप्पे-चप्पे पर पुलिस की पैनी नजर थी।
यह भी शरीक हुए इस सुरों की महफिल मेंः
महापौर महेश विजय, उप महापौर सुनीता व्यास, निगम आयुक्त शिवप्रसाद एम नकाते, मेला अधिकारी व उपायुक्त राजेंद्र सिंह चारण, उपायुक्त राजेश डागा, मेला आयोजन समिति सदस्य पार्शद महेश गौतम लल्ली, नरेंद्र सिंह हाड़ा, रमेष चतुर्वेदी, मोनू कुमारी, मीनाक्षी खंडेलवाल, प्रकाश सैनी, भगवान स्वरूप गौतम, विकास तंवर, कृश्णमुरारी सामरिया, पार्शद महेष गौतम सोनू, गोपाल राम मंडा, विवेक राजवंषी, विनोद नायक, ध्रुव राठौड़, एसी भूपेद्र माथुर, मेला प्रभारी प्रेम शंकर शर्मा, मेला सह सचिव व सहायक लेखाधिकारी दिनेश कुमार जैन सहित बड़ी संख्या में वरिष्ठ्जन, सीनियर पत्रकार व गजल के रसिक श्रोता सपरिवार शरीक हुए। गजल संध्या से पहले विजयश्री रंगमंच पर रामदास राव ने गजलों की प्रस्तुति दी।
– मीडिया पॉइंट
आईना मुझसे मेरी पहले सी सूरत मांगे…
फलक पर रोशन होता चांद और इधर दिलों में उतरते मौशिकी के सितारे। पुरानी मोहब्बत के साथ यादों का सफर जो एक बार शुरू हुआ तो फिर देर रात तक नहीं थमा।
सारंगी के सुरों और तबले की थाप के साथ फनकार की जुगलबंदी ऐसी हुई कि हजारों की भीड़ में सिर्फ एक ही आवाज सुनाई दे रही थी और वो थी तलत अजीज की। पूरे समां में कुछ खनक रहा था तो सिर्फ एक के बाद एक दिलों को छूती नायाब गजलें।
कोटा दशहरा मेले में शुक्रवार की हसीं रात तलत अजीज और उनकी मौशिकी के चाहने वालों के नाम रही। विजयश्री रंगमंच पर कार्यक्रम की शुरुआत सांसद ओम बिरला, महापौर महेश विजय, यूआईटी चेयरमैन रामकुमार मेहता और विधायक हीरालाल नागर ने मां सरस्वती की प्रतिमा के सम्मुख दीप प्रज्वलित कर की।
रस्मों के बाद मौशिकी के चाहने वालों का सामना फनकार से हुआ तो हर कोई दिल थाम कर बैठ गया। पहली ही गजल में तलत अजीज ने कोटा के बाशिंदों के साथ ऐसा रिश्ता जोड़ा कि सब आहें भर उठे… उन्होंने जैसे ही गजल गाई
‘अब क्या देखें तुझे देखने के बाद, क्या गजल सुनाऊं तुझे सुनने के बाद…’ तालियों की गडग़ड़ाहट से पूरा मेला प्रांगण गूंज उठा। इसके बाद उन्होंने साल 1981 में कोटा में दी गई अपनी पहली परफोरमेंस का जिक्र करते हुए श्रोताओं को खुद से जोडऩे की कोशिश करते हुए शेर पढ़ा…. ‘क्या कभी सोचा है हमारे रिश्ते का नाम, इश्क-मोहब्बत-जुनून, या जो रिश्ता जमीं से आसमां का है या फिर बारिशों का बादल से है’ तो हर ओर फिर तालियां बज उठीं।
इसके बाद तो मानो जैसे फनकार तलत और उनके अजीज श्रोताओं के बीच की सारी दूरियां ही मिट गईं। इस अजीम माहौल पे उन्होंने पहले ‘मैं यादों के चराग जलाने लगा’ गजल सुनाई और फौरन बाद ही मशहूर शायर शहरयार की कलम से निकली व खैयाम की मौशिकी से सजी उमरावजान फिल्म की दिलकश पेशकश ‘ जिंदगी जब भी तेरी बज्म में लाती है हमें, ये जमीं चांद से बेहतर नजर आती है हमें’ और फिर ‘आज जाने की जिद न करो’ सुनाकर हजारों लोगों का दिल ही जीत लिया।
रात चढऩे के साथ ही जब लोग आंखें मलने लगे तो तलत अजीज ने ‘खूबसूरत हैं आंखें तेरी, रात को जागना छोड़ दे’ सुनाकर लोगों की नींद ही उड़ा।
इसके बाद फरमाइशों का ऐसा सिलसिला शुरू हुआ जो आखिर तक नहीं थमा। राग रागेश्वरी पर साजिंदों के साथ जुगलबंदी करने के बाद तलत अजीज ने ‘फिर छिड़ी रात, याद फूलों की… रात है या बरात फूलों की’ ‘मेरे हमसफर, मेरे हमनवा, मेरे जानेजहां, कहूं और क्या…’ ‘मैने रोका भी नहींऔर वो ठहरा भी नहीं…’ ‘पास आने वाले क्यों छोड़ जाते हैं…’ ‘कुछ दूर हमारे साथ चलो…’ गजल के साथ ऐसी तान छेड़ी कि हर कोई हसीन यादों में डूब गया।
आखिर में हर दिल को छूने वाली …. आईना मुझसे मेरी पहले सी सूरत मांगे, मेरी अपने होने की निशानी मांगे…गजल सुनाकर मौशिकी के हसीं सफर को मुकम्मल किया।
हर मुलाकात का अंजाम जुदाई क्यों है, अब तो हर वक्त यही बात सताती है हमें…
विजयश्रीरंगमंच का मिजाज शुक्रवार की रात को अब तक हुए अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों से कुछ अलग था। तेज लाइटों की झिलमिलाहट थी और आधुनिक म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट का तेज आवाज में संगीत था। शांत माहौल में परंपरागत वाद्य यंत्र हारमोनियम, तबला और बांसुरी की तान छिड़ी हुई थी। गजल गायक तलत अजीज एक के बाद एक गजलें पेश कर रहे थे। बीच-बीच में तबले और बांसुरी की जुगलबंदी चल रही थी। दर्शक दीर्घा बेशक अन्य दिनों के मुकाबले खाली थी, लेकिन जो लोग थे वो बड़े ही शांति के साथ गजलों का आनंद ले रहे थे।
शाम-ए-गजल की शुरूआत तलत अजीज ने कैसे सुकून पाऊं तुझे देखकर… से की। इसके बाद उन्होंने एक के बाद एक गजल …हर मुलाकात का अंजाम जुदाई क्यूं है, अब तो हर वक्त यहीं बात सताती हमें…., यह जमीन चांद से बेहतर नजर आती है हमें… जिंदगी जब भी तेरी बज्म में लाती है हमें… कैसे ये सुकून पाऊं देखने के बाद अब क्या गजल सुनाऊं तुझे देखने के बाद… आवाज दे रही है मेरी जिंदगी मुझे जाऊं या ना जाऊं तुझे देखने के बाद…, तेरी निगाहे मस्ती ने मामूर कर दिया… तू सामने आंखों से हो बयां तो सांसों को रोक लू चेहरा कहा छुपाऊंतुझे देखने के बाद… पेश की। इसके बाद …आई जो रुत सुहानी तेरी याद गई महकी जो रातरानी तेरी याद गई… बरसात की भीगी रातों में… गजलें सुनाई। ढोलक तबले की जुगलबंदी के साथ सितार, वायलन हारमोनियम आदि साज के साथ आया तेरे दर पर दीवाना… फास्ट रिदम के साथ पेश कर जावेद अख्तर की इस गजल पर श्रोताओं को झूमने को मजबूर कर दिया। उन्होंने वो चांदनी का बदन खुशबू का साया है, बहुत अजीज हमें है मगर पराया है… प्यार का पहला खत लिखने में वक्त तो लगता है… आदि गजलें पेश की। गजल संध्या से पहले विजयश्री रंगमंच पर रामदास राव ने गजलों की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सांसद ओम बिरला, विशिष्ट अतिथि विधायक हीरालाल नागर, यूआईटी अध्यक्ष रामकुमार मेहता, बलवीर सिंह सिसोदिया, वरिष्ठ भाजपा नेता नंदलाल शर्मा, जिला परिषद सदस्य प्रेम गोचर, भाजपा देहात जिला उपाध्यक्ष रिंकू सोनी थे।
दशहरा मेले में शुक्रवार की रात विजयश्री रंगमंच पर गजल गायक तलत अजीज ने एक से बढ़कर एक गजल सुनाई। अपनी प्रस्तुति से उन्होंने ऐसा समां बांधा कि लोग उनके साथ गजल गुनगुना रहे थे। उनको सुनने के लिए देर रात तक श्रोता डटे रहे।